71.राग रामकली
राम न सुनिरयौं एक घरी।
परम भाग सुक्रित के फल तै सुंदर देह धरी।
जिहि जिहि जोनि भ्रम्यौ संकट-बस, सोइ-सोइ सुखनि भरी।
काम-क्रोध-मद-लोभ-गरब मैं बिसरयौ स्याम हरी।
भैया-वंध-कुटुंब धनेरे, तिनतैं कछु न सरी।
लै देही घर-बाहर जारी, सिर ठोंकी लकरी।
मरती बेर सम्हारन लागे, जो कुछ गाडि धरी।
सूरदास तैं कछू सरी नहि, परी काल-फंसरी।
72.राग रामकली
नर देहो पाइ चित चरन-कमल दीजै।
दीन बचन, संतनि-संग दरम-परस कीजै।
लीला-गुन अमृत रस स्त्रवननि पुट पीजै।
सुंदर सुख निरखि, ध्यान नैन माहिं लोजै।
गद्गद सुर, पुलक रोम अंक प्रेम भीजै।
सूरदास गिरिधर-जस गाइ गाइ जीजै।