सुवा, चलि ता बन कौ रस पीजै।
जा बन राम नाम अभ्रित-रस, स्रवन-पात्र भरि लीजै।
को तेरौ पुत्र, पिता तू काकौ, घरनी, घर कौ तेरौ ?
काग-सृगाल-स्वान कौ भेजन, तू कहै मेरौ-मेरौ।
बन बारानसि मुक्ति-क्षेत्र है, चलि तोकौं दिखराऊँ।
सूरदास साधुनि की संगति, बड़े भाग्य जो पाऊँ।।340।।