सुवा चलि ता बन कौ रस पीजै -सूरदास

सूरसागर

प्रथम स्कन्ध

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राग देवगंधार





सुवा, चलि ता बन कौ रस पीजै।
जा बन राम नाम अभ्रित-रस, स्रवन-पात्र भरि लीजै।
को तेरौ पुत्र, पिता तू काकौ, घरनी, घर कौ तेरौ ?
काग-सृगाल-स्‍वान कौ भेजन, तू कहै मेरौ-मेरौ।
बन बारानसि मुक्ति-क्षेत्र है, चलि तोकौं दिखराऊँ।
सूरदास साधुनि की संगति, बड़े भाग्‍य जो पाऊँ।।340।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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