सुफलकसुत हृदय ध्यान, कीन्हौ अविनासी।
हरन करन समरथ वै, सब घट के बासी।।
धन्य, धन्य कसहिं कहि, मोहिं जिन पठायौ।
मेरौ भरि काज, मीच आप कौ बुलायौ।।
यह गुनि रथ हाँकि दियौ, नगर परयौ पाछै।
कछु सकुचत, कछु हरषत, चल्यो स्वाँग काछै।।
बहुरि सोच परयौ दरस दच्छिन मृगमाला।
हरष्यौ अकूर 'सूर', मिलिहै गोपाला।।2944।।