दच्छिन दरस देखि मृगमाला। अति आनंद भयौ तिहिं काला।।
अबहीं बन मिलिहौ गोपाला। स्याम जलद तनु अंग रसाला।।
ता दरसन तै होउँ निहाला। बहु दिन के मेटौ जंजाला।।
मुख ससि नैन चकोर बिहाला। तन त्रिभंग सुंदर नंदलाला।।
बिबिध सुमन हिरदै सुभ माला। सारसहू तै नैन बिसाला।।
निसचय भयौ कंस कौ काला। 'सूरज' प्रभु त्रिभुवन प्रतिपाला।।2945।।