सुत-मुख देखि जसोदा फूली।
हरषित देखि दुध को दँतियाँ, प्रेममगन तन की सुधि भूली।
बाहिर तैं तब नंद बुलाए, देखौ धौं सुंदर सुखदाई।
तनक तनक सों दूध-दँतुलिया, देखौ नैन सफल करो आई।
आनँद सहित महर तब आए, मुख चितवत दोउ नैन अघाई।
सूर स्याम किलकत द्विज देख्यौ, मनौ कमल पर बिज्जु जमाई।।82।।