सुक नृप और कृपा करि देख्‍यौ -सूरदास

सूरसागर

प्रथम स्कन्ध

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राग बिलावल





सुक नृप और कृपा करि देख्‍यौ। धन्‍य भाग तिन अपनौ लेख्‍यौ।
बिनती करी चरन सिर नाइ। सप्‍त दिवस सब मेरी आइ।
तउ कुटुंब कौ माह न जात। तन धन मोह आइ लपटात।
जानि बूझि मैं होत अजान। उपजत नाहीं मन मैं ज्ञान।
अरु तनु छूटत बहु दुख होइ। तातैं सोच रहै नहिं कोइ।
बिना सोच सुमिरन क्‍यौं होइ। आज्ञा होइ करौं अब सोइ।
सुक कह्यौ, तन धन कुटुंब बिहाइ। हरि पद भजौ, न और उपाइ।
आयु भग्‍न-घट-जल ज्‍यौं छीजै। अह निसि हरि हरि सुमिरन कीजै।
नृप षट्वांग पूर्व इक भयौ। सु तौ द्वै घरी मैं तरि गयौ।
रात दिवस तेरी तौ आइ। कहौं भागवत, सुन चित लाइ।
सुनि हरि-कथा धरौ हरि-ध्‍यान। सब जग जानौ स्‍वप्‍न समान।
या बिधि जो हरि-पद उर धरिहौ। निस्‍संदेह सूर तौ तरिहौ।।342।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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