सिव संकर हमकौं फल दीन्हौ -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग आसावरी


सिव संकर हमकौं फल दीन्हौ।
पुहुप, पान, नाना फल, मेवा, षट-रस अर्पन कीन्हौ।।
पाइ परीं जुवतीं सब यह कहि, धन्य-धन्य त्रिपुरारी।।
तुरतहिं फल पूरन हम पायो, नंद-सुवन गिरिधारी।।
बिनय करतिं सबिता, तुम सरि को, पय अंजलि, कर जोरी।।
सूर स्याम पति तुम तैं पायौ यह कहि घरहिं बहोरी।।798।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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