ब्रत पूरन कियौ नंद-कुमार। जुवतिनि के मेटे जंजार।।
जप तप करि तनु अब जनि गारौ। तुम घरनी मैं कंत तुम्हारौ।।
अंतर सोच दूरि करि डारौ। मेरौ कह्यौ सत्य उर धारौ।।
सरद-रास तुम आस पुराऊँ। अंकम भरि सबकौं उर लाऊँ।।
यह सुनि सब मन हरष बढ़ायौ। मन-मन कह्यौ कृष्न पति पायौ।।
जाहु सबै घर घोष-कुमारी। सरद-रास दैंहौं सुख भारी।।
सूर स्याम प्रगटे गिरिधारी। आनंद सहित गईं घर नारी।।797।।