सबै ब्रज है जमुना कैं तीर।
कालिनाग के फन पर निरतत, संकर्षन कौ बीर।
लाग मान थेइ-थेइ करि उघटत, ताल मृदंग गँभीर।
प्रेम मगन गावत ग्रंध्रव गन ब्यौम विमाननि भौर।
उरग-नारि आगैं भई ठाढ़ी, नैननि ढारतिं नीर।
हम कौं दान देइ, पति छाँड़हु, सुंदर स्याम सरीर।
आए निकसि पहिरि मनि- भूषन, पीत-बसन कटि चोर।
सूर स्याम कौं भुज भरि भेंटत, अंकम देत अहीर।।575।।