खेलत-खेलत जाइ कदम चढ़ि -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग कान्हरौ



खेलत-खेलत जाइ कदम चढ़ि, झपि जमुना-जल लीन्हौ।
सोवत काली जाइ जगायौ, फिरि भारत हरि कीन्हौ।
उठि जुवती कर जोरि विनति करी, स्यामि दान मोहिं दीजै।
टूटत फन, फाटत तन दुहुँ दिसि, स्याम निहौरी लीजै।
तब अहि छाँड़ि दियौ करुनामय, मोहन-मदन, मुरारी।
सागर-बास दियौ काली कौं, सूरदास बलिहारी।।576।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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