सँदेसनि बिरह बिथा क्यौ जानि।
जब तै दृष्टि परी वह मूरति, कमल बदन की काँति।।
अब तौ जिय ऐसी बनि आई, कहौ कोउ किहुँ भाँति।
जो वह कहै सोइ सो सुनि सखि, जुग बर रैनि विहाति।।
जौलौ नहिं भेटौ भुज भरि हरि, उर कचुकि न सुहाति।
'सूरदास' प्रभु कमलनयन बिनु, तलफति अरु अकुलाति।।3772।।