वृंदावन देख्‍यौ नँद-नंदन -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग सारंग



वृंदावन देख्‍यौ नँद-नंदन, अतिहिं परम सुख पायौ।
जहँ-जहँ गाइ चरति, ग्‍वालनि सँग, तहँ-तहँ आपुन धायौ।
बलदाऊ मोकौं जनि छाँड़ौ, सँग तुम्‍हारै ऐहौं।
कैसेहुँ आजु जसोदा छाँड़यौ, काल्हि न आवन पैहौं।
सोवत मोकौं टेरि लेहुगे, बाबा नंद-दुहाई।
सूर स्‍याम विनती करि बल सौं, सखनि समेत सुनाई।।415।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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