खेलत कान्‍ह चले ग्‍वालनि सँग -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग बिलावल



खेलत कान्‍ह चले ग्‍वालनि सँग।
जसुमति यहै कहत घर आई हरि कीन्‍हे कैसे रँग।
प्रातहिं तैं लागे याही ढँग अपनी टेक करयौ है।
माखन-रोटी अरु सीतल जल, जसुमति दियौ पठाइ।
सूर नंद हँसि कहत महरि सौं, आवत कान्‍ह चराइ।।414।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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