विलम तजि भामिनी बिलसि ब्रजनाथ सौ बिकट प्राबृद कटक निकट आयौ।
सघन घनस्याम तन सजत नभ नव बरन कान्ह उर उरनि तै नाथि धायौ।।
कहा कर जलद तन प्रभू बन उपकरन सुरत विद्युत छटा निगम गायौ।
चलहि अरधाग अँग संग हिलि मिलि हुलसि मैं जु सजोग कौ सपथ खायौ।।
न कर मन मान अभिमान गथ ग्रहन कौ प्रेम प्राचीद्र इंद्र धनु चढ़ायौ।
‘सूर’ बलवीर तेउ न धरि रह धीर भीरु नँदलाल तौ सुजस गायौ।। 100 ।।