किन तू गवन खरिकहिं कई री -सूरदास

सूरसागर

1.परिशिष्ट

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राग गौरी




किन तू गवन खरिकहिं कई री।
अब चलि देखि प्रानपति की गति, तब तै कहा भई री।।
जा छिन तै तू दई दिखाई कर दोहनी लई री।
तब तै तन मन परी चटपटी गाइ न दुहन दई री।।
अब ताकौ उपचार करै किन, प्रीति की बेलि बई री।
इतने कारज पर सब की चलि लागी प्रेम जई री।।
चलि मिलि बहुरि बहुरि जामन दै दै उर छवि जमई री।
'सूरदास' प्रभु स्याम सुंदर सन भेटत काम रई री।। 99 ।।

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