रास-मंडल-मध्य स्याम राधा।
मानौ घन बीच दामिनी कौंधति सुभग एक है रुप, द्वै नाहिं बाधा।।
नायिका अष्ट अष्टहु सोहहीं, बनी चहुँ पास सब गोप-कन्या।
मिले सब संग नहि लखत कोउ परसपर, बने षट-दस सहस कृष्न-सन्या।।
सजे श्रृंगार नव-सात जगमगि रहे अंग-भूषन, रैनि बनी तैसी।
सूर प्रभु नवल गिरिधर, नवल राधिका, नवल व्रज-नारि-मंडली जैसी।।1052।।