रास मंडल मध्य स्याम राधा -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग धनाश्री


रास-मंडल-मध्य स्याम राधा।
मानौ घन बीच दामि‍नी कौंधति सुभग एक है रुप, द्वै नाहिं बाधा।।
नायिका अष्ट अष्टहु सोहहीं, बनी चहुँ पास सब गोप-कन्या।
मिले सब संग नहि लखत कोउ परसपर, बने षट-दस सहस कृष्न-सन्या।।
सजे श्रृंगार नव-सात जगमगि रहे अंग-भूषन, रैनि बनी तैसी।
सूर प्रभु नवल गिरिधर, नवल राधिका, नवल व्रज-नारि-मंडली जैसी।।1052।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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