राम भक्तवत्‍सल निज वानौ -सूरदास

सूरसागर

प्रथम स्कन्ध

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राग धनाश्री



राम भक्तवत्‍सल निज वानौ।
जाति, गोत, कुल, नाम, गनत नहिं, रंक होइ कैं रानैं।
सिव-ब्रह्मादिक कौन जाति प्रभु, हौं अजान नहिं जानौं।
हमता जहाँ तहाँ प्रभु नाहीं, सो हमता क्‍यौं मानौं
प्रगट खंभ तै दए दिखाई, जद्यपि कुल कौ दानौ।
रघुकुल राघव कृस्‍न सदा ही गोकुल कोन्‍हौं थानौ।
बरनि न जाइ भक्त की महिमा, बारंबार बखानौं।
ध्रुव रजपूत, विदुर दासी-सुत, कौन कौन अरगानौ।
जुग जुग बिरद यहै चलि आयौ, भक्तनि-हाथ बिकानौ।
राजसूय मैं चरन पखारे स्‍याम लिए कर पानौ।
रसना एक, अनेक स्‍याम-गुन, कहँ लगि करौं बखानौ।
सूरदास-प्रभु की महिमा अति, साखी बेद-पुरानौ।।11।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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