रानिनि परबोधि स्याम महर द्वार आए -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

Prev.png
राग कल्यान


रानिनि परबोधि स्याम महर द्वार आए।
कालनेमि बस उग्रसेन सुनत धाए।।
चरननि धुकि परयौ आइ त्राहि नाथा।
बहुतै अपराध परे छमहु मैं सनाथा।।
महाराज श्री मुख कहि लियौ उर लगाई।
हमकौ अपराध छ्मौ करी हम ढिठाई।।
तबही सिघासन पै उग्रसेन धारे।
छत्र सिर धराइ चँवर अपने कर ढारे।।
ठाढ़े आधीन भए, देव देव भाषे।
अपने जन कौ प्रसाद, सादर सिर राखे।।
मोकौ प्रभु इती कहा विस्व भरन स्वामी।
घट घट की जानत हौ तुम अंतरजामी।।
तौ फिरि नृप कहत कहा तुमकौ यह केती।
सेवा तुम जोती करी दैहौ पुनि तेती।।
रजक धनुष गज मल्लनि कंस मारि काजा।
'सूरज' प्रभु कीन्हौ तब उग्रसेन राजा।।3084।।

Next.png

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः