निदरि मारयौ कंस देवनाथा -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग रामकली


निदरि मारयौ कंस देवनाथा।
निदरि मारे कस पूतना आदि दै, धरनि पावन करी भइ सनाथा।।
लोक लोकनि बिदित कथा तुरतहि गई, करन अस्तुति जहाँ तहाँ आए।
देव दुदुभि पुहुष वृष्टि जय धुनि करै, दुष्ट इन मारि सुरपुर पठाए।।
केस गहि करपि जमुना धार डारि दए, सुन्यौ नृप नारि पति मारयौ।
भई व्याकुल सबै हेत रोवन लगी, मरन कौ तुरत जौहर बिचारयौ।।
गए तहँ स्याम बलराम बोधी सबै, कहत तब नारि तुम करी नैसी।
सुनहु नृप वाम यह काम ऐसोइ रह्यौ, जानि यह बात क्यौ कहति ऐसी।।
मरति काहै कहा तुमहि कौ यह भई, जानि प्रज्ञान तुम होति काहै।
'सूर' नृप नारि हरि वचन मान्यौ सत्य, हरष ह्वै स्याम मुख सवनि चाहै।।3083।।

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