राधे हरि तेरौ नाग बिचारै।
तुम्हरेइ गुन ग्रंथित करि माला, रसनाकर सौ टारै।।
लोचन मूँदि ध्यान धरि, दृढ़ करि, पलक न नैकु उघारै।
अंग अंग प्रति रूप माधुरी, उर तै नहीं बिसारै।।
ऐसा नेम तिहारे पिय कै, कह जिय निठुर तिहारै।
'सूर' स्याम मनकाम पुरावहु, उठि चलि कहै हमारै।।2587।।