राधे छिरकति छींट छबीली -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग ललित


राधे छिरकति छींट छबीली।
कुच कुंकुम कंचुकि बंद छूटे, लटकि रही लट गीली।।
बंदन सिर ताटंक गंड पर, रतन जटित मनि नीली।
गति गयंद, मृगराज सुकटि पर, सोभित किंकिनि ढीली।।
मच्यौ खेल जमुना-जल-अंतर, प्रेम मुदित रस-झीली।
नंद-सुवन-भुज ग्रीव बिराजति, भाग-सुहाग भरीली।।
बरषत सुमन देवगन हरषत, दुंदुभि सरस बजीली।
सूर स्याम-स्यामा रस क्रीड़त, जमुना-तरंग थकीली।।1160।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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