राधा स्यामरंग रँगी -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

Prev.png
राग नट


राधा स्यामरंग रँगी।
रोम रोमनि भिदि गयौ सब, अंग अंग पगी।।
प्रीति दै मन लै गए हरि, नंदनंदन आपु।
कृष्न-रस-उन्मत्त नागरि, दुरत नहिं परतापु।।
चली जमुना जाति मारग, हृदै यहै बिचार।
'सूर' प्रभु कौ दरस पाऊँ, निगम-अगम-अपार।।1928।।

Next.png

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः