राधा ये ढंग हैं री तेरे।
वैसे हाल मथत दधि किन्हें हरि मनु लिखे चितेरे।
तेरौ मुख देखत ससि लाजै, और कह्यौ क्यौ बाँचे।।
नैना तेरे जलज-जात हैं, खंजन तैं अति नाचैं।
चपला तैं चमकति अति प्यारी, कहा करैंगी स्यामहिं।।
सुनहु सूर ऐसेहिं दिन खोवति, काज नहीं तेरे धामहिं? ।।718।।