दुहत स्याम गैया बिसराई -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग सूहौ


दुहत स्याम गैया बिसराई।
नोई लै पग बाँधि वृषभ कैं, दोहनि माँगत कुँवर कन्हाई।
ग्वाल एक दोहनि लै दीन्ही, दुहौ स्याम अति करौ चँड़ाई।
हँसत परस्पर तारी दै दै, आजु कहाँ तुम रहे भुलाई।।
कहत सखा, हरि सुनत नहीं सो, प्यारी सौं रहे चित अरुझाई।
सूर स्याम राधा-तन चितवत, बड़े चतुर की गई चतुराई।।717।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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