राधा माधव भेंट भई।
राधा माधव, माधव राधा, क्रीट भृंग गति ह्वै जु गई।।
माधव राधा के रँग राँचे, राधा माधव रंग रई।
माधव राधा प्रीति निरंतर, रचना करि सो कहि न गई।।
विहंसि कह्यो हम तुम नहिं अंतर, यह कहिकै उन व्रज पठई।
‘सूरदास’ प्रभु राधा माधव, व्रज विहार नित नई नई।। 4292।।