राधा चकृत भई मन माही -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग धनाश्री


राधा चकृत भई मन माही।
अबहीं स्याम द्वार ह्वै झाँके, ह्यो आए क्यों नाहीं।।
आपु न आइ तहाँ जो देखै, मिले न नंदकुमार।
आवत ही फिरि गए स्यामघन, अति ही भयौ बिचार।।
सूनै भवन अकेली मै ही, नीकै उझकि निहारयौ।
मोतै चुक परी मै जानी, तातै मोहि बिसारयौ।।
इक अभिमान हृदय करि बैठी, एते पर झहरानी।
'सूरदास' प्रभु गए द्वार ह्वै, तब व्याकुल पछितानी।।2075।।

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