यह जान्यौ जिय राधिका, द्वार हरि लागे।
गर्व कियौ जिय प्रेम कौ, ऐसे अनुरागे।।
वैठि रही अभिमान सौ, यह ठौर न पायौ।
हृदय स्याम-सुख-धाम मैं, अभिमान बसायौ।।
राधा जिय यह जानि कै, आपुन पछिताही।
जहाँ गर्व अभिमान है, तहँ गोविंद नाही।।
तहाँ नैकहूँ नहि रहे, नहि दरसन दीन्हौ।
'सूर' स्याम अंतर भए, जब गर्वहिं चीन्हौं।।2074।।