रघुनाथ पियारे, आजु रहौ -सूरदास

सूरसागर

नवम स्कन्ध

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राग सारंग
दशरथ-विलाप


  
रघुनाथ पियारे, आजु रहौ (हो)।
चारिजाम बिस्राम हमार, छिन-छिन मीठे वचन कहौ (हो)।
वृथा होहु वर बचन हमारौ, कैकई, जीव कलेस सहौ (हो)।
आतुर ह्वै अब छाँडि़ अवधपुर, प्रानजिवन कित चलन कहौ (हो)।
बिछुरत प्रान पयान करैंगे, रहौ आजु पुनि पंथ गहौ (हो)।
अब सूरज दिन दरसन दुरलभ, कलित कमल कर कंठ गहौ (हो)॥33॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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