ये नैना यौ आहिं हमारे।
इतने तै इतने हम कीन्हे, वारे तै प्रतिपारे।।
धोवति पुनि अंचल लै पोंछति, आँजति इनहिं बनाइ।
बड़े भए तब लौन मानि यह, जहँ तहँ चलत भगाइ।।
ऐसे सेवक कहाँ पाइहौ, यहै कहै हरि आगै।
ये अब ढीठ भए ह्याँ डोलत, इनहिं बनै परित्यागै।।
'सूर' स्याम तुम त्रिभुवन नायक, दुखदायक तुम नाही।
ज्यौ त्यौ करि ये हमहिं मिलावहु, यहै कहै बलि जाही।।2258।।