इन नैननि की कथा सुनावै।
इनकौ गुन औगुन हरि आगै, तिल तिल भेद जनावै।।
इनसौ तुम परतीति बढ़ावत, ये है अपने काजी।
स्वारथ मानि लेत रति करि कै, बोलत हाँ जी, हाँ जी।।
ये गुन नहि मानत काहू कौ, अपनै सुख भरि लेत।
'सूरज' प्रभु ये पहिलै हित करि, फिरि पाछै दुख देत।।2257।।