ये नैना अतिही चपल चोर -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग सूही


ये नैना अतिही चपल चोर।
सरबस मूसि देत माधव कौ, सुधि बुधि, सुधन बिबेकहुँ मोर।।
अनजानत कल बेनु स्रवन सुनि, चितै रहत है उनकी ओर।
मोहन मुख मुसुकाइ चले मन भेद भयौ यह लयौ अँकोर।।
हरि कौ दोष कहा कहि दीजै, जो कीजै सो इनकौ थोर।
'सूर' संग सोवत न परी सुधि पायौ मरम बियोगिनि भोर।।2376।।

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