यह सुनि कै हँसि मौन रही री।
ब्रज उपहास कान्ह राधा कौ, यह महिमा जानी उनही री।।
जैसी बुद्धि हृदय है इनकै, तैसीयै मुख बात कही री।
रवि कौ तेज उलूक न जानै, तरनि सदा पूरन नभही री।।
विष कौ कीट विषहिं रुचि मानै, कहा सुधा रसही री।
'सूरदास' तिल-तेल-सवादी, स्वाद कहा जानै घृतही री।।1924।।