यह मोकौं तबहीं न सुनाई। मैं बहुतै कीन्ही अधमाई।।
पूरन ब्रह्म रहे ब्रज आई। काहू तौ मौहिं सुधि न दिवाई।।
सुरनि कही नहिं करि भलाई, आजु कह्यौ जब महत गँवाई।।
यह सुनि अमर गए सरमाई। सुनहु राज हम जानि न पाई।।
अब सुनियै आपुन मन लाई। ब्रजहिं चलौ नहिं और उपाई।।
वै हैं कृपा-सिंधु करुनाकर। छमा करहिंगे श्री सुंदर बर।।
और कछू मन मैं जिनि आनहु। हम जो कहैं सत्य करि मानहु।।
सूर सुरनि यह बात सुनाई। सुरपति सरन चल्यौछ अकुलाई।।946।।