जब जान्यौ ब्रज-देव मुरारी। उतर गई तब गर्ब-खुमारी।।
ब्याकुल भयौ डरयौ जिय भारी। अनजानत कीन्ही अधिकारी।।
बैठि रहे तैं नहिं बनि आवै। ऐसौ को जो मोहिं बचावै।।
बार-बार यह कहि पछितावै। जाउँ सरन बल मनहिं धरावै।।
जाइ परौं चरननि सिर धारौं। की मारौ की मोहिं उबारौ।।
अमरनि कह्यौ करौ असवारी। ऐरावत कौं लेहु हँकारी।।
सूर सरन सुरपति चल्यौ धाई। लिये अमर-गन संग लगाई।।947।।