यह मुरली जरि गई न तबहीं -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग धनाश्री


यह मुरली जरि गई न तबहीं।
अब आपनौ कुल-दाह करायौ तब कैसें करि निबही।।
ऐसी चतुर चतुरई कीन्ही, आपु बची सब जारी।
कैसैं मिली सूर के प्रभु कौं, विधना की गति न्यारी।।1300।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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