यह मुरली कुस-दाहनहारी। सुनहु स्रवन दै सब ब्रजनारी।।
कपटिनी कुटिल बांस की जाई। बन तैं कहाँ घरहिं यह आई।।
जो अपनैं घर बैर बढ़ावै। तनहीं तन मिली आगि लगावै।।
ऐसी की संगति हरि कीन्ही। जाति नहीं वाकी उन चीन्ही।।
जैसे ये तैसी वह आई। बिधना जोरी भली बनाई।।
मुरली कैं संग मिले मुरारी। भाग सुहागिनी पिय अरु प्यारी।।
अहैं कुलट कुलटा ये दोऊ। इक तैं एक नहीं घटि कोऊ।।
अधरनि धरत सबनि के आगैं। कर तैं नैंकु कहूँ नहिं त्यागैं।।
इनके गुन कहियै सो थोरे। सूर स्याम बंसी-बस भोरे।।1309।।