यह पूजा मोहिं कान्ह बताई।
भूल्यौ फिरत द्वार देवनि कैं त्रिभुवनपति तुमकौं बिसराई।।
आपुहिं कृपा करी सुपनांनर, स्यामहिं दरस दियौ तुम आई।
ऐसे प्रभु कृपाल करुनामय, बालक की अति करी बड़ाई।।
गिरि-पाइनि लै हरि कौं, पारत हलधर कौं पाइनि तर नाई।
सूर स्याम बलराम तुम्हारे, इनकौं कृपा करौ गिरिराई ।।846।।