मो सम कौन कुटिल खल कामी -सूरदास

सूरसागर

प्रथम स्कन्ध

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राग जंगला-तिताला



मो सम कौन कुटिल खल कामी।
तुम सौं कहा छिपी करुणामय, सबके अंतरजामी।
जो तन दियौ ताहि विसरायौ, ऐसौ नोन-हरामी।
भरि भरि द्रोह विषै कौं धावत, जैसे सूकर ग्रामी।
सुनि सतसंग होत जिय आलस, विषियिनि सँग विसरामी।
श्रीहरि-चरन छाँड़ि बिमुखनि की निसि-दिन करत गुलामी।
पापी परम, अधम, अपराधी, सब पतितनि मैं नामी।
सूरदास प्रभु अधम उधारन सुनियै श्रीपति स्‍वामी।।।148।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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