मो सम कौन कुटिल खल कामी।
तुम सौं कहा छिपी करुणामय, सबके अंतरजामी।
जो तन दियौ ताहि विसरायौ, ऐसौ नोन-हरामी।
भरि भरि द्रोह विषै कौं धावत, जैसे सूकर ग्रामी।
सुनि सतसंग होत जिय आलस, विषियिनि सँग विसरामी।
श्रीहरि-चरन छाँड़ि बिमुखनि की निसि-दिन करत गुलामी।
पापी परम, अधम, अपराधी, सब पतितनि मैं नामी।
सूरदास प्रभु अधम उधारन सुनियै श्रीपति स्वामी।।।148।।