मुरली दूरि कराएं बनिहै।
अबहीं तैं ऐसे ढँग याके बहुरि काहि यह गनिहै।
लागी यह कर-पल्लव बैठन, दिन-दिन बाढ़ति जाति।
अबहीं तैं तुम सजग होहु री, मैं जु कहति अकुलाति।
यह ब्रज मैं नहिं भलीं बात है, देखी हृदय बिचारि।
सूर स्याम वाही के ह्वै गए, सब ब्रजनारि बिसारि।।1235।।