अबहीं तैं हम सबनि बिसारी।
ऐसे बस्य भए हरि वाके, जाति न दसा बिचारी।।
कबहूँ कर पल्लव पर राखत, कबहुँ अधर लै धारी।
कबहूँ लगाइ लेत हिरदै सौं, नैंकहुं करत न न्यारी।।
मुरली स्याम किए बस अपनैं, जे कहियत गिरिधारी।
सूरदास प्रभु कैं तन-मन-धन, बाँस बँसरिया प्यारी।।1236।।