माया नित्यहि अध -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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उद्धववचन


माया नित्यहि अध, ताहि द्वै लोचन जैसे।
ज्ञानी नैन अनंत ताहि सूझत नहि कैसे।।
बूझहु निगम बुलाइ कै, कहै भेद समुझाइ।
आदि अंत जानौ नही कौन पिता को माइ।।

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