घर लागी अरु घूर कहौ -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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गोपीवचन


घर लागी अरु घूर कहौ मन कहाँ लगावै।
अपनौ घर परिहरै कहौ को घूर बुझावै।।
मूरख जादव जाति है, हमैं सिखावत जोग।
हमसौ भूली कहत है, हम भूली किधौ लोग।।
ऊधौं कहि सति भाइ न्याइ तुम्हरै मुख साँचै।
जोग प्रेम रस कथा कहौ कंचन की काँचै।।
जाके पहरै हूजिए साँचौ ताकौ नेम।
मधुप हमारी सौ कहौ, जोग भलौ कै प्रेम।।
प्रेम प्रेम तै होइ, प्रेम तै पारहि जइयै।
प्रेम बँध्यौ संसार प्रेम परमारथ लहियै।।
साँचौ निहचै प्रेम कौ, जीवन मुक्ति रसाल।
एकै निहचै प्रेम कौ, जबै मिलै गोपाल।।
सुनि गोपिनि कौ प्रेम, नेम ऊधौ कौ भूल्यौ।
गावत गुन गोपाल, फिरत कुंजनि मैं फूल्यौ।।

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