माधौ जू हों पतित-सिरोमनि -सूरदास

सूरसागर

प्रथम स्कन्ध

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राग धनाश्री



            

माधौ जू, हों पतित-सिरोमनि।
और न कोई लायक देखौं, सत-तत अध प्रति रोमनि।
अजामील मनिकाऽरु ब्याध, मृग, ये सब मेरे चटिया।
उनहूँ जाइ सौंह दै पूछौ, मैं करि पठयौ सटिया।
यह प्रसिद्ध सबही की संमत बड़ौ बड़ाई पावै।
ऐसौ को अपने ठाकुर कौ इहि विधि महत घटावै।
नाहक मैं लाजनि मरियत है, इहाँ आइ सब नासी।
यह तौ कथा चलैगी आगैं, सब पतितनि मैं हाँसी।
सूर सुमारग फेरि चलैगौ, वेद-नचन उर धारौ।
बिरद छुड़ाइ लेहु बलि अपनौ, अब इहि तैं हद पारौ।।192।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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