माधौ जू, मन माया बस कीन्हौ।
लाभ-हानि कछु समुझत नाहीं, ज्यौं पतंग तन दीन्हौ।
गृह दीपक, धन तेल, तूल तिय, सुत ज्वाला अति जोर।
मैं मति-हीन मरम नहि जान्यौ, परयौ अधिक करि दौर।
बिवस भयौं नलिनो के सुक ज्यौं, बिन गुन मोहि गह्यौ।
मैं अज्ञान कछू नहिं समुइयौ, परि दुख-पुंज सह्यौ।
बहुतक दिवस भए या जग मैं, भ्रमत फिरयौ मति-हीन।
सूर स्यामसुंदर जौ सेवैं, क्यौं होवै गति दीन।।46।।