अब हौं माया-हाथ बिकानौं -सूरदास

सूरसागर

प्रथम स्कन्ध

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राग बिहागरौ



            
अब हौं माया-हाथ बिकानौं।
परबस भयौ पसू ज्‍यौं रजु-वस, भज्‍यौ न श्रीपति रानौ।
हिंसा-मद ममता-रस भूल्‍यौ, आसाहीं लपटानौ।
वाही करत अधीन भयौ हौ, निद्रा अति न अघानौ।
अपने ही अज्ञान-मिमिर मैं, विसरयौ परम ठिकानौ।
सूरदास की एक आँखि है, ताहू मैं कछु कानौ।।47।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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