मातु पिता तुम्हरे धौं नाहीं -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग जैतश्री


मातु-पिता तुम्हरे धौं नाहीं।
बारंबार कमल-दल-लोचन, यह कहि-कहि पछिताहीं।।
उनके लाज नहीं, बन तुमकौं आबन दीन्ही राति।।
सब सुंदरी, सबै नवजोवन, निठुर अहिर की जाति।।
की तुम कहि आई, की ऐसेहिं कीन्ही कैसी रीति।।
सूर तुमहिं यह नहीं बूझियै, करी बड़ी बिपरीति।।1013।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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