(फूले) फगुवा दियौ रस राख्यौ, पट भूषन नहिं (रह्यौ) काख्यौ, सरस रसहि फूल डोल।।
(फूले) हरि हँसि अमृत भाख्यौ, सबही कौ मन राख्यौ, संतन हित फूल डोल।।
(फूले) नारदादि करत गान, रिषि मुनि सिव धरत ध्यान सरस रसहि फूल डोल।
बीना हरि जस बखान, (कस मारि) फेरी उग्रसेन आन संतन हित फूल डोल।।
(फूले) कही हरि मुनि कहो जाइ, तुरंत मोहि लै बुलाइ सरस रसहि फूल डोल।
(फूले) रजधानी असुर आइ, जमुना मैं देउँ बहाइ संतन हित फूल डोल।।
(फूले) उग्रसेन छत्र धाइ, मथुरा आनंद बढ़ाइ सरस रसहिं फूल डोल।
(फूले) पितु माता मिलौ धाइ, दुख नसि सुख देउँ जाइ संतनि हित फूल डोल।।
(फूले) मुनि सुनि ज्ञान हरषाइ, भूमी ब्रज रतन छाइ सरस रसहि फूल डोल।
(फूले) सुरपति-सुर-सची आइ, नभ चढ़ि सुमन बरषाइ संतन हित फूल डोल।।
(फूले) हरषत होरी खिलाइ, मुनि गए बैकुंठसिधाइ सरस रसहि फूल डोल।
(फूले) हरषहि हरि सुजस गाइ, पूछत सुर, कहि न जाइ संतन हित फूल डोल।।
पढै पढ़ावै सुनै सुनावै, ते बैकुंठ परम पद पावै सरस रसहि फूल डोल।
'सूरदास' कैसै करि गावै, लीलासिंधु पार नहिं पावै संतन हित फूल डोल।।2917।।