हरि पिय तुम जनि चलन कहौ।
यह जनि मोहिं सुनावहु प्रीतम, जनि यह गहनि गहौ।।
जब चलियौ तबही कहियौ अब जनि कहि उरहिं दहौ।
जौ चलियै तौ अबही चलियै, प्राननि लै निबहौ।।
प्रान गऐ बरु भलौ मानिहै, यह जनि प्रान सहौ।
प्रान औरहु जनम मिलत है, तुम पुनि मिलत न हौ।।
जानराइ जिय जानि मानि सुख, अब की बार रहौ।
'सूरदास' प्रभु कौ लालच, उत कबहूँ जनि उमहौ।।2918।।