(माई) नैकुहूँ नदरद करति, हिलकिनि हरि रोवै।
बज्रहु तैं कठिन हियौ, तेरौ है जसोवै।
पलना पौढ़ाइ जिन्हैं बिकट बाउ काटै।
उलटे भुज बाधि तिन्हैं लकुट लिए डाँटै।
नैंकहूँ न थकत पानि, निरदई अहीरी।
अहो नंदरानि, सीख कौन पै लही री।
जाकौं सिव सनकादिक सदा रहत लोभा।
सूरदास प्रभु कौ मुख निरखि देखि सोभा।।348।।