कुँअर जल लोचन भरि-भरि लेत -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

Prev.png
राग बिहागरौ



कुँअर जल लोचन भरि-भरि लेत।
बालक बदन बिलोकि जसोदा, कत रिस करति अचेत।
छोरि उदर तैं दुसह दाँवरी, डारि कठिन कर बेंत।
कहि धौं री तोहि क्‍यों किर आवै, सिसु पर तामस एत।
मुख आँसू अरु माखन-कनुका, नि‍रखि नैन छबि देत।
मानौ स्रवत सुधानिधि मो‍ती, उडुगन अवलि समेत।
ना जानौं किहिं पुन्‍य प्रगट भए इहिं ब्रज नंद-निकेत।
तन-मन-धन न्‍यौछावरि कीजै सूर स्‍याम कै हेत।।349।।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः